रीढ़ की हड्डी दर्द में आयुर्वेदिक दवाओं के लाभ।
रीढ़ की हड्डी का दर्द आयुर्वेदिक दवा के मायनों में शरीर से दर्द भागने और उपचार करने के काम आती है। मरीज को रीढ़ की हड्डी में किस वजह से तकलीफ हो रही है इस बात को अच्छे से तसल्ली करने के बाद ही चिकित्सक उपचार आरम्भ करता है। उपचार के तौर तरीकों की बात करें तो एक जमाना था जब वैद या आयुर्वेदाचार्य मरीज की नाड़ी पकड़कर रोगों को बता दिया करते थे। नाड़ी शरीर का ऐसा भाग है जिसका सीधा संबंध हृदय सहित मस्तिष्क से होता है। प्रति सेकंड या मिनट इंसान की नाड़ी का पल्स रेट यह तय करता है कि इंसान की स्थिति कैसी है। समय के साथ नाड़ी देखने का तरीका भी बदल गया। बदलाव के साथ नई तकनीक की मशीनों से जांच करने के बाद दवाओं के सेवन की सलाह मरीज के लिए काफी लाभदायक होती है। रीढ़ के रोग में मरीज की मौके की स्थिति के हिसाब से दवाओं के सेवन की सलाह दी जाती है। मरीज की उम्र, लिंग सहित किस वजह से दर्द की अनुभूति जो रही है वे साथ ही चिकित्सकीय इतिहास भी पूछा जाता है। रोगी वर्तमान समय में किन दवाओं का सेवन कर रहा है या फिर किस अन्य रोग से गुजर चुका है यह काफी मायने रखता है। मरीज द्वारा पूर्व में सेवन की गई औषधि हड्डियों के लिए किस तरह का नुकसान पहुंचा सकती है या पहुंचा चुकी है यह बात कुछ टेस्ट के दौरान साबित हो जाता है। रीढ़ के कुछ आंतरिक रोगों जैसे गठिया या अर्थराइटिस में कुछ ऐसी आयुर्वेदिक दवाओं के सेवन की सलाह दी जाती है जो शरीर पर परहेज के साथ विस्तृत लाभ पहुंचा सकती हैं। रीढ़ की हड्डियों में संक्रमण या फिर गलत उठने बैठने से तिरछी हुई हड्डियों के लिये कुछ मलहम भी दिये जाते हैं जिनके लगातार प्रयोग से दर्द में काफी लाभ प्राप्त होता है। एक स्वास्थ्य सर्वे के मुताबिक भारत जैसे देश में कुपोषण की समस्याओं से भी इस तरह के रोगों को पनपते हुए देखा जाता है। शरीर में कैल्शियम और विटामिन डी की कमी हड्डियों को गलाने का काम करती हैं। समय से आयुर्वेदिक दवा का सेवन जहां रोग कम करता है तो दूसरी तरफ किसी प्रकार का कोई साइड इफेक्ट देखने को नही मिलता। आयुर्वेद वास्तव में जीवन के लिए किसी अमृत से कम नही है लेकिन इसका सेवन चिकित्सक की सलाह से किया जाना श्रेयष्कर माना जाता है।
रीढ़ की हड्डी दर्द में आयुर्वेदिक दवा संबंधित जटिलतायें।
रीढ़ की हड्डी का दर्द आयुर्वेदिक दवा के कई लाभ होते हैं। इससे संबंधित कुछ जटिलतायें भी होती हैं। किसी भी अन्य विधा की उपचारित दवाओं के साथ आयुर्वेदिक दवा का सेवन शरीर को भारी नुकसान पहुंचा सकता है। ज्यादा या कम मात्रा की दवाओं का असर शरीर पर नकारात्मक होता है। यदि ज्यादा मात्रा में दवा का सेवन किया जाए तो यह ओवर डोज कर सकता है जिससे शरीर के कई आंतरिक ऑर्गन्स को भारी नुकसान हो सकता है। कम मात्रा में रीढ़ के रोग की दवा शरीर पर असर नही करती। आयुर्वेद में तुरंत राहत प्रदान करने की दवा नही ईजाद हो पाई है। शरीर पर इन दवाओं का असर धीमी गति से होता है। परहेज की कई विधाओं को अपनाने से ही आयुर्वेदिक दवा हड्डियों के रोगों के दर्द में कारगर हो पाती है। दुर्लभ जड़ी बूटियों से बनी दवाओं का इस्तेमाल किसी पंजीकृत वैद या चिकित्सक की सलाह पर ही करना चाहिए। वैसे इस विधा की दवाओं का असर व्यापक होता है फिर भी समय समय पर हल्का व्यायाम करते रहना आवश्यक होता है। शरीर को गर्मियों के मौसम में निर्जलीकरण से बचाने के लिए नियमित रूप से 6 से 8 लीटर पानी का सेवन करते हुए आहार में दूध और हरी पत्तेदार सब्जियों की मात्रा को भी बढ़ाना चाहिए। मरीज को कभी भी हल्के दर्द को नजरअंदाज नही करना चाहिए। उसकी स्थिति चाहे जैसी भी जो तुरंत चिकित्सकीय सलाह से दवाओं का सेवन करें।