गठिया रोग आमतौर पर शरीर में धीमी गति से विकसित होने वाला मर्ज़ है. हड्डियों के जोड़ों में हिलाने डुलाने चलने फिरने उठने बैठने पर दर्द, जकड़न और सूजन महसूस होती है. कमोवेश यह रोग हिलने डुलने पर भी दर्द का कारण बन जाता है. अक्सर देखा गया है कि तमाम चिकित्सा विधाओं से हार मान लेने के बाद लोग गठिया में अक्सर होम्योपैथिक उपचार लेना शुरू कर देते हैं. कुछ सर्वे तो यहाँ तक बताते हैं कि इस समस्या को पूरी तरह से पारंपरिक चिकित्सा द्वारा निदानित नही किया जा सकता.
निरंतर दर्द सहन करते हुए इंसान कई दवाओं के साइड इफेक्ट का शिकार हो जाता है तब इस चिकित्सा विधा की तरफ अग्रसर होता है. इस लेख के माध्यम से आज हम होम्योपैथिक चिकित्सा से हड्डियों के जोड़ों में दर्द का इलाज जानेंगे और साथ ही कुछ ऐसे पहलुओं पर भी चर्चा करेंगे जिनसे कभी- कभी मरीजों को नुकसान भी उठाना पड़ जाता है.
गठिया में होम्योपैथी चिकित्सा के फायदे
हड्डियों के जोड़ों में युरेट ऑफ़ सोडियम के एकत्र होने से शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ जाती है. मात्रा के बढ़ने के साथ ही अस्थियों में कमजोरी और घर्षण बढ़ने लगता है. इस तरह के घर्षण से गांठों की ग्रीस प्रभावित होकर सूखना शुरू हो जाती है. गठिया के उपचार के लिए होम्योपैथी एक बेहतर साधन माना जाता है. मसलन इसका उपचार काफी लंबा चलता है लेकिन धीरे-धीरे मरीज को आराम की अनुभूति प्राप्त होने लगती है.
आमतौर पर गठिया रोग में चिकित्सक नक्स्वोमिका नामक दवा खाने की सलाह दी जाती है। इसकी कुछ बूंदों को पानी में मिलाकर प्रयोग करने से मरीज़ को आराम मिलता है। ख़ास बात यह है कि इन दवाओं का सेवन नियमित तौर पर करने से यहाँ तक कहा जाता है कि गठिया एकदम से जड़ से समाप्त हो जाता है। हालांकि ऐसे दावे हम नही करते क्योंकि इस तरह दवाओं के नियमित प्रयोग से मरीज को आराम मिलता है।
होम्योपैथी चिकित्सा के नुकसान
होम्योपैथिक चिकित्सा विधा का सबसे बड़ा नुकसान यह है कि मरीज की आपात स्थिति के समय यह दवाएं किसी काम नही आती. कल्पना कीजिए यदि इन दवाओं का आप रोग में सेवन कर रहे हों और अचानक आपका दर्द हद से ज्यादा बढ़ जाए तब क्या करेंगे? इस स्थिति में दर्द को तुरंत दूर करने वाली विधा एलोपैथ ही इस्तेमाल करना होगा जो इस दवा के साथ अभिक्रिया कर शरीर को नुकसान पहुंचा सकता हैंऐसी दवाइयां शरीर पर बेहद धीमी गति से असर करती है. शल्य चिकित्सा या अन्य परिस्थितियों में, जब मरीज को तुरंत इलाज की आवश्यकता होती है, तब होमियोपैथी इलाज़ बेकार साबित हो जाते हैं.
शारीरिक पोषण की पूर्ति के लिए यह विधा पूरी तरह असफल मानी जाती है। .