गठिया में लाभकारी है कैल्शियम युक्त आहार का सेवन।
हमारे दैनिक जीवन में उपयोग होने वाली कई ऐसी खाद्य सामग्रियां हैं जिनका समुचित उपयोग शरीर में कैल्शियम की मात्रा का संतुलन बनाये रखता है। गठिया रोग में खान पान की गुणवत्ता बेहद आवश्यक होती है। मसलन बथुआ ओर पालक में जहां आयरन भरपूर मात्रा में पाया जाता है तो वहीं गोभी जैसी सब्जी में कैल्शियम की प्रचुर मात्रा पाई जाती है। इसके अलावा दूध कैल्शियम का बड़ा स्रोत माना जाता है। नियमित तौर पर इसका सेवन गठिया रोग में बेहद लाभ पहुंचाता है। हमारे दैनिक जीवन में सूर्य की रोशनी का एक अलग ही महत्व है। प्राकृतिक तौर पर इससे हमें बेहद प्रचुरता से विटामिन डी प्राप्त होता है।
गठिया रोग में पालक के साग के साथ ही इसे जूस के रूप में भी लिया जा सकता है. सब्जियों में गाजर या फिर चुकंदर को कच्चे या सलाद के रूप में प्रयोग करने से भी शरीर में काफी तेजी से कैल्शियम की मात्रा का संचार होता है। इन साग सब्जियों की समुचित मात्रा के सेवन से जहाँ जोड़ों की मांसपेशियों को बल मिलता है तो वहीँ फ्लूड की भी सुरक्षा होती है.
गठिया की परेशानी बढ़ने पर जड़ों वाले फल और सब्जियां काफी कारगर साबित होते हैं। इन जड़ वाली सब्जियों में गाजर, आलू, गंजी जैसे फल काफी गुणवत्तापूर्ण और लाभदायक साबित हो सकते हैं। खास बात यह है कि इन्हे कच्चे या उबालकर दोनों तरीकों से खाया जा सकता है। इसके अलावा दर्द ज्यादा बढ़ने पर अदरक का सूप बेहद लाभदायक साबित हो सकता है. इसके सेवन से शरीर की हड्डियों में मौजूद जोड़ों में जड़ जमा चुका यूरिक एसिड पेशाब द्वार या पसीने के माध्यम से बाहर निकल जाता है और शरीर को बेहद आराम मिलता है।
गठिया में दूध और सूखे मेवे का सेवन-
गठिया या अर्थराइटिस हड्डियों से सम्बंधित ऐसा रोग होता है जिससे इंसान ही हड्डियों के जोड़ बेहद प्रभावित होने लगते हैं. दूध ऐसा तत्व है जिसमें कैल्शियम की उच्च मात्रा तो पाई ही जाती है बल्कि हड्डियों को पूरक आहार देने की क्षमता भी इसमें होती है. दूध की संचित मात्रा में सेवन करना गठिया से निजात तो दिलाता है बल्कि इस रोग के शरीर में पनपने से भी सुरक्षा करता है। पूरक आहार के लिए सूखे मेवे जैसे बादाम, काजू सहित चिरौंजी और मुनक्के को पीसकर दूध में उबालकर एक गिलास रोज रात को भोजन के बाद लेने से गठिया दर्द में आराम प्राप्त होता है. ध्यान रहे दूध यदि गाय का हो और शुद्ध हो तो इसकी गुणवत्ता और बढ़ जाती है।
मांसाहार में चिकन का कर सकते हैं उपयोग-
चिकन ऐसा तत्व होता है जिसमें प्रोटीन सहित कैल्शियम भरपूर मात्रा में पाया जाता है. मटन की जगह चिकन का प्रयोग गठिया में लाभदायक हो सकता है. ध्यान रहे इसके सीमित मात्रा का ही प्रयोग करें। अक्सर चिकित्सक गठिया जैसे रोगों के लिए मांसाहार का सेवन वर्जित कर सकते हैं लेकिन कुछ परिस्थितियों में चिकन का संयमित प्रयोग रोग में बेहद आरामदायक साबित होता है. चिकन को जब भी पकाकर खाएं ध्यान रखें उसमें लाल मिर्च या फिर गर्म मसाले के साथ ही ज्यादा मात्रा में तेल का प्रयोग ना करें। ऐसा करने से उसमें मौजूद सकारात्मक तत्व नष्ट होकर शरीर को क्षति पहुंचा सकते हैं.
नीबू पानी और लहसुन का प्रयोग
गर्मियों के मौसम में शरीर में पानी की कमी होना स्वाभाविक होता है. गठिया जैसे रोगों में पानी की कमी तकलीफ को और बढ़ा सकती है. नीबू में मौजूद विटामिन सी और नीमूलिन तत्व जहां यूरिक एसिड को बाहर निकालता है तो दूसर तरह शरीर में पानी की मात्रा की कमी को भी पूरा करता है. नियमित रूप से सुबह शाम एक नीबू का सेवन इस तारा की समस्या में बेहद असरदार साबित हो सकता है. इसके अलावा लहसुन एक अच्छा दर्दनाशक माना जाता है. लहसुन की एक कली को छीलकर खाली पेट पानी से निगलने पर गठिया में बेहद आराम मिलता है. गठिया रोग में खानपान के लिए लहसुन को कच्चा या फिर मसाले में प्रयोग करना काफी लाभदायक रहता है.
गठिया रोग में खानपान सम्बंधित जरूरी सुझाव/ सलाह
गठिया रोग हो जाने पर मानव शरीर में यूरिया की मात्रा बढ़ जाती है. यूरिक एसिड बढ़ने के कारण ही जोड़ों में सूजन और दर्द का अनुभव बढ़ने लगता है. खासकर यह तकलीफ ठंड के मौसम में ज्यादा असर दिखती है लेकिन बदलता मौसम भी इसके पनपने का महफूज समय होता है। ऊपर बताये गए आहार जहाँ इस रोग में बेहद फायदा पहुंचते हैं तो दूसरी तरह कुछ परहेज भी आवश्यक होता है। गठिया में खानपान में मटन और टमाटर का प्रयोग बिलकुल भी नहीं करना चाहिए। मछली या फिर ज्यादा मीठी शुगर युक्त चीजों का परित्याग कर ज्यादा मात्रा में पानी का सेवन काफी लाभ पहुंचाता है. खानपान एक ऐसा मुद्दा है जिसके संतुलन से शरीर में गठिया होने के मौके काफी काम हो जाते हैं. हालांकि इसका दर्द बढ़ने पर चिकित्सक की सलाह से उपचार करना काफी लाभदायक होता है.